Saturday 28 January 2017

मानव जीवन और भारतीय ज्योतिष:
समस्त भारतीय ज्ञान (एवं एक्यूपंचर ज्ञान) की पृष्ठभूमि दर्शन शास्त्र है I भारतीय दर्शन के अनुसार परमात्मा अनंत एवं अखण्ड (absolute) है I इसी में अपना संसार भी स्थित है I यांग पहला बल है यिन दूसरा (responsive) बल है जो निरंतर परमात्म तत्व से जुड़ा हुआ है I Qi, जो यांग एवं यिन के पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप सत्ता में आया है, निश्चिय ही परमात्म तत्त्व से परिछिन्न है I इस अंश को जो यांग बल के कारण अलग दीखता है आत्मा कहते हैं यिन के आवरण द्वारा अलग दिखने वाली, विभिन्न नाम रूप से परिचित यही हमारे संसार की वस्तुयें हैं I परमात्म तत्व के परिमाण और यांग यिन के बलाबल के अनुसार मानव, पशु, पक्षी, वनस्पति आदि विभिन्न नाम रूप हमारे संसार में दीखते हैं I इनमे एक critical minimum आत्म तत्व के परिमाण से ज्यादा होने से वस्तु (Qi) चेतन कहलाती है I उस critical minimum से कम आत्म तत्व वाली वस्तुयें (Qi) अचेतन कहलाती हैं I जितने प्रकार के चेतन प्राणी हैं उनमे मानव सर्वाधिक आत्म तत्व वाला है I एक अतिम महत्वपूर्ण बात बौद्ध धर्म से यह समझ में आती है कि आत्म तत्व का संवर्धन और परिशोधन तीन कार्यों से होता है
 १) सत्य 
२) करुणा और 
३) सहिष्णुता I अस्तु ! 

संसार के आदि से विभिन्न देशों के अनेक चिंतकों द्वारा यह समझ में आया की यह यांग पर यिन का आवरण एकल न होकर कई सतही है I आत्म तत्व पर आरोपित शरीर रूपी लेप ! प्रमुख रूप से इन layers को तीन वर्गों में विभाजित करके अलग नामों से कहा गया:
1. Mental Plane (कारण शरीर)
2. Astral Plane (सूक्ष्म शरीर) and

3. Physical Plane (स्थूल शरीर) 

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